चमत्कारकरं धीरैर्बाह्यमाध्यात्मिकं तप: ।
तप्यते जन्मसन्तानशंकितैरार्यसूरिभि: ॥5॥
अन्वयार्थ : संसार की परिपाटी से भयभीत धीर और श्रेष्ठ मुनीश्वरगण, उक्त निर्जरा का एकमात्र कारण तप ही है ऐसा जानकर बाह्य और अभ्यन्तर दोनों प्रकार का तप करते हैं ॥५॥

  वर्णीजी