तत्र बाह्यं तप: प्रोक्तमुपवासादिषड्विधम् ।
प्रायश्चित्तादिभिर्भेदैरन्तरङ्गं च षड्विधम् ॥6॥
अन्वयार्थ : उनमें से अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन और कायक्लेश ये छह तो बाह्य (बहिरंग) तप हैं और प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान ये छह अभ्यन्तर तप हैं । इनका विशेषरूप जानना हो तो तत्वार्थसूत्र की टीकाओं को देखना चाहिये ॥६॥

  वर्णीजी