
पवित्रीक्रियते येन येनैवोध्द्रिययते जगत् ।
नमस्तस्मै दयार्द्राय धर्मकल्पाङ्घ्रिपाय वै ॥1॥
अन्वयार्थ : जिस धर्म से जगत पवित्र किया जाता है तथा उद्धार किया जाता है और जो दयारूपी रस से आद्र और हरा है उस धर्मरूपी कल्पवृक्ष के लिये मेरा नमस्कार है ॥१॥
वर्णीजी