दशलक्ष्मयुत: सोऽयं जिनैर्धर्म: प्रकीर्तित: ।
यस्यांशमपि संसेव्य विन्दन्ति यमिन: शिवम् ॥2॥
अन्वयार्थ : वह धर्म जिसके अंशमात्र को भी सेवन करके संयमी मुनि मुक्ति को प्राप्त होते हैं, उसे जिनेन्द्र भगवान ने दश लक्षणयुक्त कहा है ॥२॥

  वर्णीजी