वर्णीजी
चिन्तामणिर्निधिर्दिव्य: स्वर्धेनु: कल्पपादपा: ।
धर्मस्यैते श्रिया सार्द्धं मन्ये भृत्याश्चिरन्तना: ॥4॥
अन्वयार्थ :
लक्ष्मीसहित चिन्तामणि, दिव्य नवनिधि, कामधेनु और कल्पवृक्ष, ये सब धर्म के चिरकाल से किंकर
(सेवक)
हैं, ऐसा मैं मानता हूँ ॥४॥
वर्णीजी