वर्णीजी
धर्मो नरोरगाधीशनाकनायकवाञ्छिताम् ।
अपि लोकत्रयीपूज्यां श्रियं दत्ते शरीरिणाम् ॥5॥
अन्वयार्थ :
धर्म जीवों को चक्रवर्ती, धरणीन्द्र तथा देवेन्द्रों द्वारा वांछित और त्रैलोक्यपूज्य तीर्थंकर की लक्ष्मी को देता है ॥५॥
वर्णीजी