पर्जन्यपवनार्केन्दुधराम्बुधिपुरन्दरा: ।
अमी विश्वोपकारेषु वर्त्तन्ते धर्मरक्षिता: ॥7॥
अन्वयार्थ : मेघ, पवन, सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, समुद्र और इन्द्र ये सम्पूर्ण पदार्थ जगत के उपकाररूप प्रवर्तते हैं और वे सब ही धर्म द्वारा रक्षा किये हुए प्रवर्तते हैं । धर्म के बिना ये कोई भी उपकारी नहीं होते हैं ॥७॥

  वर्णीजी