
न तत्त्रिजगतीमध्ये भुक्तिमुक्त्योर्निबन्धनम् ।
प्राप्यते धर्मसामर्थ्यान्न यद्यमितमानसै: ॥9॥
अन्वयार्थ : इस तीन जगत में भोग और मोक्ष का ऐसा कोई भी कारण नहीं है जिसको धर्मात्मा पुरुष धर्म की सामर्थ्य से न पाते हों अर्थात् धर्मसामर्थ्य से समस्त मनोवांछित पद को प्राप्त होते हैं ॥९॥
वर्णीजी