नमन्ति पादराजीवराजिकां नतमौलय: ।
धर्मैकशरणीभूतचेतसां त्रिदशेश्वरा: ॥10॥
अन्वयार्थ : जिनके चित्त में धर्म ही एक शरणभूत है, उनके चरणकमलों की पंक्ति को इन्द्रगण भी नम्रीभूत मस्तक से नमस्कार करते हैं ॥१०॥

  वर्णीजी