
धत्ते नरकपाताले निमज्जज्जगतां त्रयम् ।
योजयत्यपि धर्मोऽयं सौख्यमत्यक्षमङ्गिनां ॥12॥
अन्वयार्थ : यह धर्म, नरकों के नीचे जो निगोद स्थान है उसमें पड़ते हुए जगत्त्रय को धारण करता है-अवलम्बन देकर बचाता है तथा जीवों को अतीन्द्रिय सुख भी प्रदान करता है ॥१२॥
वर्णीजी