वर्णीजी
नरकान्धमहाकूपे पततां प्राणिनां स्वयम् ।
धर्म एव स्वसामर्थ्याद्दत्ते हस्तावलम्बनम् ॥13॥
अन्वयार्थ :
नरकरूपी महा अंधकूप में स्वयं गिरते हुए जीवों को धर्म ही अपने सामर्थ्य से हस्तावलम्बन
(हाथ का सहारा)
देकर बचाता है ॥१३॥
वर्णीजी