
वेष्टित: पवनै: प्रान्ते महावेगैर्महाबलै: ।
त्रिभिस्त्रिभुवनाकीर्णो लोकस्तालतरुस्थिति: ॥2॥
अन्वयार्थ : तीन भुवन सहित यह लोक अन्त में सब तरफ से अतिशय वेग वाले और अतिशय बलिष्ठ तीन वातवलयों से वेष्टित है और ताड़ वृक्ष के आकार सरीखा है अर्थात् नीचे से चौड़ा, बीच में सरल तथा अन्त में विस्ताररूप है ॥२॥
वर्णीजी