
निष्पादित: स केनापि नैव नैवोद्धृतस्तथा ।
न भग्न: किन्त्वनाधारो गगने स स्वयं स्थित: ॥3॥
अन्वयार्थ : यह लोक किसी के द्वारा बनाया नहीं गया है अर्थात् अनादिनिधन है। भिन्न धर्मीगण इसे ब्रह्मादिक का बनाया हुआ कहते हैं, सो मिथ्या है तथा किसी से धारण किया हुआ व थामा हुआ हो, सो भी नहीं है। अन्यमती कच्छप की पीठ पर अथवा शेषनाग के फण पर ठहरा हुआ कहते हैं, यह उनका भ्रम है। यदि कोई आशंका करे कि बिना आधार के आकाश में कैसे ठहरेगा, भग्न हो जायेगा ? तो उत्तर देना चाहिये कि निराधार होने पर भी भग्न नहीं होता अर्थात् आकाश में वातवलय के आधार से स्वयमेव स्थित है ॥३॥
वर्णीजी