+ संक्षेप में दो प्रकार की आराधना -
दुविहा पुण जिणवयणे, भणिदा आराहणा समासेण ।
सम्मत्तम्मि य पढमा, विदिया य हवे चरित्तम्मि॥3॥
आराधना कही है दो विधि अति संक्षेप श्री जिनराज ।
पहली है सम्यक्त्व और चारित्र दूसरी है सिरताज॥3॥
अन्वयार्थ : जिनेन्द्र भगवान का परमागम जो द्वादशांग है, उसमें संक्षेप से आराधना दो प्रकार की कही है । एक सम्यक्त्व-आराधना और दूसरी चारित्र-आराधना ।

  सदासुखदासजी