+ आगे सम्यक्त्व के बिना जो ज्ञान है, वह अज्ञान है - ऐसा कहते हैं- -
सुद्धणया पुण णाणं, मिच्छादिठ्ठिस्स वेंति अण्णाणं ।
तम्हा मिच्छादिट्ठी, णाणस्साराहओ णेव॥5॥
मिथ्यात्वी का ज्ञान, कहें अज्ञान शुद्धनय के धारी ।
अतः ज्ञान का आराधक हो सके न मिथ्यादृग धारी॥5॥
अन्वयार्थ : शुद्धनय के धारक भगवान गणधरदेव उस मिथ्यादृष्टि के ज्ञान को अज्ञान कहते हैं । इसलिए मिथ्यादृष्टि ज्ञान का आराधक नहीं है - ऐसा जानना ।

  सदासुखदासजी