संजमाराहंतेण तवो आराहिओ हवे णियमा ।
आराहंतेण तवं चारित्तं होदि भयणिज्जं॥6॥
संयम के आराधक को है नियमित तप का आराधन ।
पर, चारित्राराधक को हो, या न तपों का आराधन॥6॥
अन्वयार्थ : संयम/चारित्र की आराधना करनेवाले जीव ने नियम से तप की आराधना भी की है; परन्तु तप की आराधना वाले जीव के चारित्र की आराधना होती भी है और नहीं भी होती है ।
सदासुखदासजी