अहवा चारित्ताराहणाए आराहिदं हवदि सव्वं ।
आराहणाए सेसस्स चारित्ताराहणा भज्जा॥8॥
अथवा चारित्राराधन हो तो आराधन सभी कहीं ।
शेष सभी आराधन हों चारित्राराधन नियम नहीं॥8॥
अन्वयार्थ : अथवा चारित्राराधना होने पर ज्ञानादि सभी आराधनाओं का आराधक होता है । शेष ज्ञान, दर्शन, तपाराधना होने पर चारित्र-आराधना भजनीय है अर्थात् हो भी और न भी हो । चारित्र-आराधना, दर्शन-ज्ञान-आराधनापूर्वक होती है । यही बतलाते हैं -
सदासुखदासजी