+ अब तप का स्वरूप कहते हैं - -
चरणम्मि तम्मि जो उज्जमो य आउंजणा य जो होदि ।
सो चेव जिणेहिं तवो भणिदो असढं चरंतस्स॥10॥
उद्यम करे और उपयोग लगावे जो जन चारित में ।
मायाचार विहीन आचरणयुत को जिनवर तप कहते॥10॥
अन्वयार्थ : मायाचार रहित आचरण करनेवाले जीव के चारित्र में उद्यम तथा उपयोग लगाने को ही जिनेन्द्र भगवान ने तप कहा है ।

  सदासुखदासजी