+ अब ज्ञान-दर्शन-चारित्र का सार कहते हैं - -
णाणस्स दंसणस्स य, सारो चरणं हवे जहाखादं ।
चरणस्स तस्स सारो, णिव्वाणमणुत्तरं भणिदं॥11॥
यथाख्यात चारित्र कहा है दर्शन और ज्ञान का सार ।
सर्वाेत्तम निर्वाण कहा है यथाख्यात चारित का सार॥11॥
अन्वयार्थ : ज्ञान-दर्शन का सार तो यथाख्यात चारित्र है और चारित्र का सार सर्वोत्कृष्ट निर्वाण भगवान ने कहा है ।

  सदासुखदासजी