णिव्वाणस्स य सारो, अव्वाबाहं सुहं अणोवमियं ।
कादव्वा हु तदठ्ठं, आदहिद-गवेसिणा चेट्ठा॥13॥
अव्याबाध अतीन्द्रिय अनुपम सुख मुक्ति का सार कहा ।
आत्महितैषी को उद्यम निर्वाण हेतु कर्त्तव्य कहा॥13॥
अन्वयार्थ : निर्वाण पाने का सार क्या है? अव्याबाध अर्थात् बाधा रहित, अनौपम्य अर्थात् उपमारहित, अतीन्द्रिय तथा निराकुलता लक्षणवाले सुख को पाना है । इसलिए आत्महित के इच्छुक को तो निर्वाण की प्राप्ति के लिये चेष्टा (पुरुषार्थ) करनाचाहिए ।

  सदासुखदासजी