सुचिरमवि णिरदिचारं, विहरित्ता णाणदंसणचरित्ते ।
मरणे विराधयित्ता, अणंतसंसारिओ दिट्ठो॥15॥
दर्श-ज्ञान-चारित्र प्रवृत्ति निरतिचार करता चिरकाल ।
किन्तु विराधे अन्त समय तो जिन देखें अनन्त संसार॥15॥
अन्वयार्थ : कोई पुरुष चिरकाल/बहुत काल से अतिचार रहित ज्ञान-दर्शन-चारित्र में प्रवृत्ति करके भी मरणसमय में चारों आराधनाओं का विनाश करके अनंत संसारी हुआ है - ऐसा भगवान ने देखा है । इसलिए मरणसमय में जैसे आराधना नहीं बिगडे, वैसा यत्न करना ।
सदासुखदासजी