जदि पवयणस्स सारो मरणे आराहणा हवदि दिट्ठा ।
किंदाइं सेसकालं जदिददि तवे चरित्ते य॥18॥
अन्तकाल में आराधन ही यदि प्रवचन का सार कहा ।
तो जीवन में तप या चारित्र हेतु यत्न करने से क्या? ॥18॥
अन्वयार्थ : जब मरण-समय में ही आराधना करना - ऐसा भगवान के आगम का सार है, ऐसा देखा है अर्थात् अंगीकार करना कहा है तो फिर सर्वकाल में आराधना ग्रहण एवं तप- चारित्र में प्रयत्न (सावधानी) क्यों करना?

  सदासुखदासजी