+ सर्वकाल में आराधना ग्रहण एवं तप क्यों? -
आराहणाए कज्जे परियम्मं सव्वदा हि कादव्वं ।
परियम्म-भाविदस्स हु सुह-सज्झाराहणा होदी॥19॥
आराधन में करने जैसे कार्य निरन्तर करने योग्य ।
भावों से परिकर्म करे तो मरण समय में सुख से हो॥19॥
अन्वयार्थ : आराधनारूप कार्य सर्वकाल में अर्थात् सदाकाल निरंतर उसकी जो सामग्री अर्थात् साधन करने योग्य है । जिसने आराधना का परिकर/सम्पूर्ण साधनों की अच्छी तरह भावना की, उसकी आराधना सुखपूर्वक साधी जाती है या साधने योग्य है ।

  सदासुखदासजी