जह रायकुलपसूदो जोग्गं णिच्चमवि कुणदि परियम्मं ।
तो जिदकरणो जुद्धे कम्मसमत्थो भविस्सदि हि॥20॥
राजपुत्र ज्यों इन्द्रिय वश कर नित्य युद्ध अभ्यास करे ।
युद्ध समय में करे सुरक्षा और शत्रु पर वार करे॥20॥
अन्वयार्थ : जैसे राजकुल में उत्पन्न हुआ राजपुत्र अपनी इन्द्रियों को वश करके अपने योग्य शस्त्रादिक के अभ्यास रूप परिकर वा सुभटादि सामग्री का नित्य ही अभ्यास और संचय करता रहता है तो वह युद्ध के अवसर में शत्रुओं पर प्रहारादिक करने में समर्थ होता हैऔर शत्रुओं के प्रहार से अपनी सुरक्षा रूप कार्य करने में समर्थ होता है ।
सदासुखदासजी