तह भाविदसामण्णोमिच्छत्तादी रिवू विजेदूण ।
आराहणापडागं हरदि सुसंथार - रंगम्मि॥23॥
वैसे साम्यभाव अभ्यासी मोह शत्रु पर विजय करे ।
संस्तर रूपी रंग-भूमि में आराधन-ध्वज फहरावे॥23॥
अन्वयार्थ : उसीप्रकार जिसने अच्छी तरह साम्यभाव का अभ्यास किया है - ऐसे जो मुनि या श्रावक, वे संस्तररूप रंगभूमि में कर्मोदय के हजारों वार निष्फल कर मिथ्यात्व, असंयम, कषायरूप शत्रुओं को जीतकर आराधनारूप पताका को ग्रहण करते हैं ।

  सदासुखदासजी