+ अब दर्शन-आराधना किसके होती है, वही कहते हैं- -
तत्थोवसमियसम्मत्तं खइयं खओवसमियं वा ।
आराहंतस्स हवे सम्मत्ताराहणा पढमा॥31॥
औपशमिक क्षायोपशमिक या क्षायिक इन तीनों में एक ।
आराधक को कहते पहली समकित आराधना जिनेश॥31॥
अन्वयार्थ : यहाँ आराधना में औपशमिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व और क्षायिक सम्यक्त्व - इन तीन सम्यक्त्वों में से कोई एक सम्यक्त्व का आराधन अर्थात् उपासना करने वाले पुरुष को प्रथम सम्यक्त्व-आराधना होती है ।

  सदासुखदासजी