सुत्तादो तं सम्मं दरिसिज्जंतं जदा ण सद्दहदि ।
सो चेव हवदि मिच्छादिट्ठी जीवो तदो पहुदि॥33॥
सुत्तादाि तं सम्मं दपरेसज्जंतं जदा ण सद्दहेद ।
साि चवि हवेद ेमच्छोदट्ठी जीवाि तदाि हिुेद॥33॥
अन्वयार्थ : सम्यग्दृष्टि जीव जो उपदेश/प्रवचन अर्थात् जिनागम, उसका श्रद्धान करता है तथा स्वयं को विशेष ज्ञान न होने से तथा आपको गुरु ने जैसा उपदेश दिया, उसको सर्वज्ञकथित मानकर गुरु के द्वारा असद्भाव/असत्यार्थ का श्रद्धान करता है; परन्तु कोई सम्यग्ज्ञानी सूत्र
सदासुखदासजी