सुत्तं गणहरकहिदं तहेव पत्तेयबुद्धिकहिदं च ।
सुदकेवलिणा कहिदं अभिण्णदसपुव्वि-कहिदं च॥34॥
सूत्र कहा गणधर के द्वारा अरु प्रत्येक-बुद्धि द्वारा ।
श्रुतकेवली कथित एवं अभिन्न पूर्व-दश के द्वारा॥34॥
अन्वयार्थ : चार सूत्रकार परमागम में प्रसिद्ध हैं । इनके वाक्यों में सत्यार्थ पदार्थ ही प्रगट होते हैं, केवली की दिव्यध्वनि से किंचित्मात्र भी अन्तर नहीं है । वह सूत्र गणधर/ चार ज्ञान के धारक और सात प्रकार की ॠद्धियों में से कोई ॠद्धि के धारक, उनका कहा हुआ सूत्र जानना । श्रुतज्ञानावरण के क्षयोपशम से पर के उपदेश बिना अपनी ही शक्ति की विशेषता से ज्ञान-संयम के भेद - विधान - विस्तार में जिसे निपुणता, प्रवीणता, ज्ञायकता हो; उन्हें प्रत्येकबुद्धि जानना - ये दूसरे सूत्रकार हैं । जो द्वादशांग के पारगामी वे श्रुतकेवली हैं - इन्हें तीसरे सूत्रकार जानना एवं परिपूर्ण दशपूर्व के ज्ञाता व अभिन्न दशपूर्व के धारी चौथे सूत्रकार हैं ।
सदासुखदासजी