+ अब सम्यक्त्वाराधना के धारक का स्वरूप कहते हैं- -
धम्माधम्मागासाणि पोग्गला कालदव्व जीवे य ।
आणाए सद्हंतो सम्मत्ताराहओ भणिदो॥36॥
धर्म अधर्म और आकाश, काल, पुद्गल अरु जीव कहे ।
जिन-आज्ञा से श्रद्धा करना समकित का आराधन है॥36॥
अन्वयार्थ : धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल, काल और जीव - ये छह द्रव्य हैं । इनका भगवान की आज्ञा प्रमाण श्रद्धान करने वाले जीव को सम्यक्त्व का आराधक कहा है । आगे और भी सम्यक्त्वी के कार्य कहते हैं-

  सदासुखदासजी