संसारसमावण्णा य छव्विहा सिद्धिमस्सिदा जीवा ।
जीवणिकाया एदे सद्दहिदव्वा हु आणाए॥37॥
छह प्रकार के संसारी अरु सिद्धि प्राप्त हैं जीव कहे ।
श्रद्धा करने योग्य कहे ये जीव-निकाय जिनाज्ञा से॥37॥
अन्वयार्थ : पृथ्वी, जल, अग्नि, पवन और वनस्पति रूप पाँच स्थावर और एक त्रस है ।
सदासुखदासजी