पदमक्खरं च एक्कं पि जो ण रोचेदि सुत्तणिद्दिठ्ठं ।
सेसं रोचंतो वि हु मिच्छादिट्ठी मुणेदव्वो॥39॥
जिनवाणी में कहे एक अक्षर पद का न करे श्रद्धान ।
शेष सभी श्रद्धान करे तो भी वह मिथ्यादृष्टि जान॥39॥
अन्वयार्थ : जो पुरुष जिनेन्द्र देव द्वारा कहे हुए सूत्र के एक पद तथा एक अक्षर का भी श्रद्धान नहीं करता, परन्तु शेष समस्त का श्रद्धान करता है तो भी वह मिथ्यादृष्टि जानना । आगे मिथ्यादृष्टि का स्वभाव/स्वरूप कहते हैं -
सदासुखदासजी