+ आगे मिथ्यादृष्टि का स्वभाव/स्वरूप कहते हैं - -
मोहोदएण जीवो उवदिठ्ठं पवयणं ण सद्दहदि ।
सद्दहदि असब्भावं उवदिट्ठं अणुवदिट्ठं वा॥40॥
मोह-उदय से जीव जिनेश्वर-वचनों का न करें श्रद्धान ।
मिथ्यादृष्टि कथित अनकथित असत्यार्थ करते श्रद्धान॥40॥
अन्वयार्थ : मोह अर्थात् मिथ्यात्व के उदय से ये जीव परम गुरुओं द्वारा उपदिष्ट प्रवचन/ परमागम उसका श्रद्धान नहीं करता है और मिथ्यादृष्टियों के द्वारा कहे गये अथवा नहीं कहे

  सदासुखदासजी