+ अब सम्यक्त्व के अतिचार कहते हैं- -
सम्मत्तादीचारा संका कंखा तहेव विदिगिंछा ।
परदिट्ठीण पसंसा अणायदणसेवणा चेव॥44॥
शंका, कांक्षा, ग्लानि करना अन्य-दृष्टि संस्तवन कहे ।
सेवन करे अनायतनों का समकित के अतिचार कहे॥44॥
अन्वयार्थ : ये (शंकादि) पाँच सम्यक्त्व के अतिचार/मल-दोष हैं, जो कि टालने योग्य हैं । ये (शंकादि) पाँच सम्यक्त्व के अतिचार/मल-दोष हैं, जो कि टालने योग्य हैं । शंका -भगवान के वचनों में संशय । कांक्षा -सुन्दर आहार, स्त्री, वस्त्र, आभरण, गंध, माल्यादि विषयों में आसक्ति - आगामी काल के लिये इनकी वांछा करना । विचिकित्सा

  सदासुखदासजी