उवगूहणठिदिकरणं वच्छल्लपभावणा गुणा भणिदा ।
सम्मत्तविसोधीए उवगूहणकारया चउरो॥45॥
उपगूहन थितिकरण और वात्सल्य प्रभावना ये गुण चार ।
सम्यग्दर्शन वृद्धि हेतु धारण करना तुम यह आचार॥45॥
अन्वयार्थ : धर्म में व धर्मात्मा में किसी की अज्ञानता से व अशक्तता से दोष लगा हो तो धर्म से प्रीति करके दोष का आच्छादन करना/ढकना, वह उपगूहन गुण है ।
सदासुखदासजी