+ अब दो गाथाओं में सम्यग्दर्शन की विनय कहते हैं- -
अरहंतसिद्धचेदिय सुदे य धम्मे य साधुवग्गे य ।
आयरिय-उवज्झाए सुपवयणे दंसणे चावि॥46॥
अर्हन्त सिद्ध और जिन-प्रतिमा शास्त्र धर्म एवं मुनिवर्ग ।
उपाध्याय आचार्य सुप्रवचन समकित ये स्थल हैं दश॥46॥

  सदासुखदासजी