एवं दंसणमाराहंतो मरणे असंजदो जदि वि कोवि ।
सुविसुद्धतिव्वलेस्सो परित्तसंसारिओ होदी॥49॥
दर्शन-आराधक यदि कोई असंयमी भी मरण करे ।
लेश्या तीव्र विशुद्ध हुई वह भव-समुद्र को पार करे॥49॥
अन्वयार्थ : जिसकी किसी भी प्रकार से विशुद्ध हुई है तीव्र लेश्या - ऐसा असंयमी भी मरणकाल में दर्शन/सम्यग्दर्शन, उसको आराधकर परीत संसारी/संसार का अभाव करता है । भावार्थ - कल्पवासी देवों में तथा उत्तम मनुष्यों में अल्प परिभ्रमण करते हैं - अधिक परिभ्रमण का अभाव हो गया है ।
सदासुखदासजी