पं-सदासुखदासजी
+
अब सम्यक्त्व-आराधना के तीन प्रकार और उनका फल दो गाथाओं द्वारा कहते हैं-
-
तिविहा सम्मत्ताराहणा य उक्कस्समज्झिमजहण्णा ।
उक्कस्साए सिज्झदि उक्कस्स-ससुक्कलेस्साए॥50॥
उत्तम मध्यम और जघन्य त्रिविध समकित-आराधन है ।
लेश्या शुक्ल हुई सर्वाेत्तम आराधक निर्वाण लहे॥50॥
सदासुखदासजी