सेसा य हुंति भवसत्त मज्झिमाए य सुक्कलेस्साए ।
संखेज्जाऽसंखेज्जा वा सेसा भव जहण्णाए॥51॥
मध्यम शुक्ल लेश्यायुत भव सात-आठ नर-देव धरें ।
और जघन्य शुक्ल लेश्यायुत संख्यासंख्य जन्म धारें॥51॥
अन्वयार्थ : सम्यक्त्व-आराधना तीन प्रकार की है - उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । उत्कृष्ट शुक्ललेश्या सहित सम्यक्त्वी आराधना करके निर्वाण को प्राप्त होता है । तात्पर्य यह है कि उत्कृष्ट शुक्ल लेश्या क्षपकश्रेणी में क्षीणकषाय वालों के तथा सयोगी भगवान के होती है, उनका निर्वाण होता ही है । मध्यम शुक्ललेश्या सहित जो सम्यक्त्व-आराधना करके संसार में अधिक रहेगा तो सात-आठ मनुष्य वा कल्पवासी देव का भव धारण करके निर्वाण को प्राप्त होता है । मध्यम शुक्ललेश्या सहित श्रद्धानी देशव्रती श्रावक या महाव्रती साधु होते हैं । वे सात-आठ भव के सिवाय अधिक संसार में परिभ्रमण नहीं करते हैं और जघन्य शुक्ललेश्या सहित जो सम्यक्त्व-आराधना के धारक अविरत सम्यग्दृष्टि के संख्यात भव (होते हैं) और यदि सम्यक्त्व छूट जाये तो असंख्यात भव अवशेष रहते हैं ।

  सदासुखदासजी