उक्कस्सा केवलिणो मज्झमिया सेस-सम्मदिठ्ठीणं ।
अविरदसम्मादिठ्ठिस्स संकिलिठ्ठस्स हु जहण्णा॥52॥
उक्कस्सा कविेलणाि मज्झेमया ससि-सम्मेदठ्ठीणं ।
एवरदसम्मोदेठ्ठस्स संेकेलठ्ठस्स हु जहण्णा॥52॥
अन्वयार्थ : उत्कृष्ट सम्यक्त्वाराधना भगवान केवली के होती है । अवशेष महाव्रती और देशव्रती सम्यग्दृष्टियों के मध्यम होती है । संक्लेश-सहित अविरत-सम्यग्दृष्टि के जघन्य सम्यक्त्वाराधना होती है ।
सदासुखदासजी