तं मिच्छत्तं जमसद्दहणं तच्चाण होइ अत्थाणं ।
संसइयमभिग्गहियं अणभिग्गहियं च तं तिविहं॥58॥
तत्त्वाथाब का अश्रद्धान है मिथ्यादर्शन के त्रय भेद ।
संशययुत संशयित कहा है, अभिग्रहीत अरु बिना गृहीत॥58॥
अन्वयार्थ : तत्त्वार्थ का अश्रद्धान, वह मिथ्यादर्शन है । वह मिथ्यात्व तीन प्रकार का है - एक संशयित, दूसरा अभिगृहीत, तीसरा अनभिगृहीत । उसमें से संशयज्ञान सहित जो श्रद्धान, वह संशयित मिथ्यात्व है और परोपदेश से जो ग्रहण किया गया मिथ्यात्व, उसे अभिगृहीत कहते हैं तथा परोपदेश के बिना ही जो विपरीत श्रद्धान है, वह अनभिगृहीत मिथ्यात्व है । यह अनादि से संसारी जीवों को है ।
सदासुखदासजी