पं-सदासुखदासजी
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आगे मिथ्यात्व का माहात्म्य प्रगट करते हैं-
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जे वि अहिंसादिगुणा मरणे मिच्छत्तकडुगिदा होंति ।
ते तस्स कडुगदुद्धियगदं व दुद्धं हवे अफला॥59॥
अहिंसादि गुण मधुर तथापि कटु हों मिथ्यादर्शन से ।
दूध में वैसे ही वे निष्फल हों॥59॥
सदासुखदासजी