जह भेसजं पि दोसं आवहइ विसेण संजुदं संतं ।
तह मिच्छत्तविसजुदा गुणा वि दोसावहा होंति॥60॥
जैसे औषधि विष-मिश्रित होने पर होती दोष स्वरूप ।
वैसे विष-मिथ्यात्व1 सहित तो गुण भी होते दोष स्वरूप॥60॥
अन्वयार्थ : जो अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, परिग्रहत्याग गुण भी मरण के अवसर में मिथ्यात्व के कारण कटुकता को प्राप्त हुए, वे कडवी तूँबी में रखे हुए दुग्ध के समान निष्फल होते हैं ।
सदासुखदासजी