जस्स पुण मिच्छदिट्ठिस्स णत्थि सीलं वदं गुणो चावि ।
सो मरणे अप्पाणं किह ण कुणदि दीहसंसारं॥63॥
मरण समय मिथ्यादृष्टि के शील नहीं, गुण-व्रत नहिं हों ।
तो फिर दीर्घकाल तक जग में भ्रमण कहो कैसे नहिं हो॥63॥
अन्वयार्थ : जिस मिथ्यादृष्टि को मरण के समय शील नहीं, व्रत नहीं, गुण नहीं तो स्वयं दीर्घ संसार में परिभ्रमण कैसे नहीं करेगा, करेगा ही करेगा ।
सदासुखदासजी