+ आगे और भी मिथ्यात्व-जनित दोष कहते हैं- -
एक्कं पि अक्खरं जो अरोचमाणो मरेज्ज जिणदिट्ठं ।
सो वि कुजोणि-णिवुड्डो किं पुण सव्वं अरोचंतो॥64॥
अरुचिवान जो एक शब्द में भी कुयोनि में भ्रमण करे ।
सर्व जिनागम की रुचि नहिं तो क्यों न भवार्णव में डूबे॥64॥
अन्वयार्थ : जिसे जिनेन्द्र देव का कहा हुआ एक अक्षर भी नहीं रुचता, न प्रीति करता; वह कुयोनि जो एकेन्द्रियादि उनमें डूबता है तो फिर जिसे सभी जिनवचन नहीं रुचते, जो जिनवचन से पराङ्मुख है, वह संसार में कैसे नहीं डूबेगा? डूबेगा ही ।

  सदासुखदासजी