संखेज्जासंखेज्जाणंता वा होंति बालबालम्मि ।
सेसा भव्वस्स भवा णंताणंता अभव्वस्स॥65॥
संख्य असंख्य या होें अनन्तभव बालबाल जो मरण करें ।
भव्यों के, यदि हों अभव्य तो काल अनन्तानन्त भ्रमें॥65॥
अन्वयार्थ : जो भव्यजीव मिथ्यात्व सहित बाल-बालमरण रूप मरण करते हैं/मरते हैं, उनके संख्यात या असंख्यात या अनंत भव संसार में बाकी हैं और जो अभव्य हैं, उनका अनंतानंत भव परिभ्रमण होगा, भव का अंत नहीं होगा ।

  सदासुखदासजी