पुव्वं ता वण्णेसिं भत्तपइण्णं पसत्थमरणेसु ।
उस्सण्णं सा चेव हु सेसाणं वण्णणा पच्छा॥66॥
पहले कहते हैं प्रशस्त जो प्रत्याख्यानभक्त मृत्यु ।
शेष मरण जो कहे गए हैं उनका आगे कथन करें॥66॥
अन्वयार्थ : प्रशस्तमरण में जो पण्डितमरण उसमें से प्रथम भक्तप्रत्याख्यान नाम के मरण को कहूँगा । मरण में अतिशय रूप से यह ही प्रशंसा योग्य है । शेष इंगिनीमरण, प्रायोपगमनमरण, पण्डित-पण्डित मरण बाद में कहेंगे ।
सदासुखदासजी