+ अब भक्तप्रत्याख्यानमरण के भेद कहते हैं- -
दुविहं तु भत्तपच्चक्खाणं सविचारमध अविचारं ।
सविचारमणागाढे मरणे सपरक्कमस्स हवे॥67॥
प्रत्याख्यान-भक्त है दोविध कहा विचारसहित अविचार ।
अनागार जो पराक्रमी हैं उन्हें मरण होता सविचार॥67॥
अन्वयार्थ : भक्तप्रत्याख्यान मरण दो प्रकार का है- एक सविचार, दूसरा अविचार । जब मरण का निश्चय नहीं हो तथा बहुत काल बाद मरण होना हो, तब आगे (69 से 72 तक की गाथाओं में) कहे गये अर्हादिक चालीस अधिकारों के, विचार/विकल्प सहित मरण अर्थात् ऐसे पराक्रम सहित आराधनापूर्वक मरण में उत्साहित जीव के सविचार भक्तप्रत्याख्यानमरण होता है और अविचार भक्तप्रत्याख्यानमरण, अर्हादि चालीस अधिकार के विचार रहित, शीघ्र आ गया मरण, वह उत्साह रहित के होता है ।

  सदासुखदासजी