उस्सग्गियलिंगकदस्स लिंगमुस्सग्गियं तयं चेव ।
अववादियलिंगस्स वि पसत्थमुवसग्गियं लिंगं॥79॥
औत्सर्गिक-लिंग ही सर्वाेत्तम है संन्यास काल में श्रेष्ठ ।
जो अपवाद-लिंग धारक वे गहें औत्सर्गिक-लिंग श्रेष्ठ॥79॥
अन्वयार्थ : जिसके सर्वोत्कृष्ट जो निर्ग्रन्थलिंग है उसके तो संन्यास के अवसर में औत्सर्गिकलिंग ही श्रेष्ठ है और जिसके अपवादिलिंग हो, उसके भी औत्सर्गिकलिंग धारण करना योग्य है ।
सदासुखदासजी