इत्थी वि य जं लिंगं दिठ्ठं उस्सग्गियं च इदरं वा ।
तं तह होदि हु लिंगं परित्तमुवधिं करेंतीए॥83॥
अल्प परिग्रहधारी नारी के लिंग भी दो भेद कहे ।
गृहत्यागी उत्सर्ग पथिक अपवाद-लिंग गृहवास करे॥83॥
अन्वयार्थ : अल्पपरिग्रह को धारण करने वाली जो स्त्री, उसको भी औत्सर्गिकलिंग या अपवादलिंग, दोनों प्रकार के होते हैं । जो सोलह हस्त प्रमाण एक सफेद वस्त्र अल्प कीमत का, जिससे पैर की ऐडी से लेकर मस्तकपर्यंत सर्व अंग को आच्छादित करके/ढककर और मयूरपिच्छिका धारण करके और ईर्यापथ में दृष्टि धारण करके, लज्जा है प्रधान जिसके, वे पुरुष मात्र पर दृष्टि नहीं करतीं , पुरुषों से वचनालाप नहीं करतीं और ग्राम अथवा
सदासुखदासजी