जत्तासाधणचिह्णकरणं खु जगपच्चयाद-ठिदिकरणं ।
गिहिभावविवेगो वि य लिंगग्गहणे गुणा होंति॥84॥
मोक्ष-मार्ग में यात्रा का साधन निर्ग्रन्थ-लिंग जानो ।
जग प्रतीति तन थितिकारण निर्ग्रन्थ-लिंग के लाभ अहो॥84॥
अन्वयार्थ : यात्रा - मोक्ष के लिये गमन करना, उसका कारण जो रत्नत्रय, उसके चिः का कारण, निर्ग्रन्थलिंग है अथवा यात्रा जो शरीर की स्थिति का कारण भोजन, उसका साधन/ कारण उसका यह निर्ग्रन्थलिंग चिः/कारण है ।
सदासुखदासजी